RSS – 100 year of Politic sand Power
एक छोटे से कमरे से शुरू हुआ संगठन आज दुनिया की सबसे बड़ी नॉन-गवर्नमेंट ऑर्गेनाइजेशन बन चुका है। राजनीति के गलियारों में भी आरएसएस की ताकत साफ़ दिखाई देती है। कहा तो यहां तक जाता है कि कई राज्यों में मुख्यमंत्री कौन बनेगा, इसका फैसला भी आरएसएस ही तय करती है। इसी वजह से जब भी आरएसएस का नाम आता है, राजनीतिक गलियारों की धड़कनें तेज हो जाती हैं।
आज देश के कई बड़े पदों पर आरएसएस से जुड़े लोग आसीन हैं। देश के प्रधानमंत्री हों या गृहमंत्री अमित शाह – दोनों ही संघ से आते हैं। अब आप समझ ही सकते हैं कि आरएसएस की शक्ति कितनी व्यापक है। 27 सितम्बर 2025 को आरएसएस ने अपने 100 वर्ष पूरे कर लिए हैं और आज यह देश के सबसे बड़े संगठित परिवार के रूप में जाना जाता है। आरएसएस शुरू से ही संगठन को ही अपनी सबसे बड़ी ताकत मानता है। कहा जाता है कि देश के कई बड़े निर्णयों में संघ की अहम भूमिका रहती है। तो चलिए जानते हैं – आरएसएस का इतिहास क्या है? इसे बनाने का मकसद क्या था? और कैसे यह दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बन गया?
आरएसएस की स्थापना
1925 में डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने हिंदू समाज को संगठित करने के उद्देश्य से आरएसएस की स्थापना की। 1917 में तुर्की के खलीफा की सत्ता छिन जाने के विरोध में भारत में खिलाफत आंदोलन शुरू हुआ। गांधीजी के नेतृत्व में कांग्रेस ने इस आंदोलन का समर्थन किया। उस समय डॉ. हेडगेवार भी कांग्रेस में थे, लेकिन उन्हें कांग्रेस द्वारा खिलाफत आंदोलन का समर्थन मुस्लिम तुष्टिकरण जैसा लगा। वो आंदोलन में शामिल तो रहे पर भीतर ही भीतर असहमत थे। 1922 के नागपुर अधिवेशन और 1925 के कोलकाता अधिवेशन में शामिल होने के बाद उन्होंने ठान लिया कि वो एक ऐसा संगठन बनाएंगे जो हिंदू हितों की आवाज़ उठाए। 1925 में अपने घर के एक छोटे से कमरे से उन्होंने शुरुआत की। शुरुआत में सिर्फ 12 लोग सुनने आते थे। मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। शाखाओं के माध्यम से योग, सूर्य नमस्कार, लाठी प्रशिक्षण और बौद्धिक चर्चा को जोड़ा गया। जल्द ही लोग प्रभावित होने लगे और संख्या बढ़ती गई। जब संख्या सैकड़ों में पहुंची तो उन्होंने 1925 में विजयदशमी के दिन नागपुर में आरएसएस की आधिकारिक स्थापना कर दी। बाद में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) में कार्यालय खोलने की अनुमति मिली और वहीं पर उनकी मुलाकात माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर (गुरुजी) से हुई, जो आगे चलकर 1940 में उनके निधन के बाद संघ के दूसरे सरसंघचालक बने। उनके नेतृत्व में संगठन दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई सहित पूरे देश में फैल गया।
आरएसएस की संरचना
संघ की संगठनात्मक संरचना इस प्रकार है:
केंद्र → क्षेत्र → प्रांत → विभाग → जिला → तहसील → नगर → खण्ड → मंडल → ग्राम → शाखा
आरएसएस की शाखाएं पाँच प्रकार की होती हैं:
प्रभात शाखा (सुबह)
सायं शाखा (शाम)
रात्रि शाखा
मिलन (सप्ताह में 1–2 बार)
संग मंडली (महीने में एक बार)
आरएसएस का विस्तार
आज संघ के 1 करोड़ से अधिक प्रशिक्षित स्वयंसेवक हैं। संघ परिवार के भीतर 80 से अधिक संगठ
न कार्यरत हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में 8000 से अधिक शाखाएं हैं। केरल जैसे राज्यों में, जहां हिंदू जनसंख्या कम है, वहां भी 5000 शाखाएं सक्रिय हैं। दुनिया के 40 से अधिक देशों में 57,000 शाखाएं संचालित होती हैं। रोज़ाना 50 लाख से अधिक लोग शाखाओं में शामिल होते हैं। देश के 60,000 गांवों में प्रतिदिन शाखाएं लगती हैं।
आरएसएस से जुड़े प्रमुख संगठन

भारतीय जनता पार्टी, भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ, सेवा भारती, राष्ट्र सेविका समिति, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP), विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, स्वदेशी जागरण मंच, विद्या भारती, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच आदि।
आरएसएस की प्रमुख उपलब्धियां
1971 (उड़ीसा चक्रवात) और 1977 (आंध्र प्रदेश चक्रवात) में राहत कार्य।
जम्मू-कश्मीर से आतंक पीड़ित 57 अनाथ बच्चों को गोद लेने का कार्य।
1954 में दादरा और नगर हवेली को पुर्तगालियों से मुक्त कराने में अहम भूमिका।
1962 के भारत-चीन युद्ध में सेना की आपूर्ति, निगरानी और परिवारों की सहायता।
आरएसएस और राजनीति
आज़ादी से पहले और बाद में आरएसएस पर समय-समय पर राजनीति में हस्तक्षेप के आरोप लगते रहे हैं। कई राज्यों में यह माना जाता है कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा, इसमें भी संघ की राय होती है।
आपको क्या लगता है? क्या आरएसएस का देश की राजनीति पर प्रभाव है? कमेंट में अपना जवाब ज़रूर बताइए।